पंचम (संतान व विद्या भाव)- इस भाव में गुरु कारकत्व दोष से पीडित्रत होता है। इस भाव में गुरु के मिले-जुले फल मिलते हैं। ग्रन्थिों के आधार पर जातक नीति विज्ञान में विशारद, समाज में लोकप्रिय, सट्टे-जुए से धन प्राप्त करने वाला, विद्वान व सन्ततिवान होता है। ऐसा जातक धर्म-कर्म में बहुत रुचि रखता है। प्रथम संतान पुत्र होती है परन्तु पुत्र क्लेश होता है अर्थात् पुत्र हो और बिगडत्र जाये तो भी क्लेश तथा पुत्र न हो तो भी क्लेश।
मेरे अनुभव में जातक को प्रथम पुत्र की हानि होती है। ऐसा जातक उच्च कोटि के साहित्य में रुचि रखता है परन्तु जातक अर्थात् स्त्री अथवा पुरुष कोई भी हो, एक से अधिक प्रणय सम्बन्ध रखता है। स्त्री वर्ग के तो अपनी आयु से अधिक आयु के व्यक्ति से सम्बन्ध बनते हैं। कोई उच्च श्रेणी का विधुर भी हो सकता है। ऐसा जातक अपने वर्ग में प्रिय अधिक होता है। प्रिय होने का उपरोक्त कारण भी हो सकता है। ऐसे जातक यदि कानून के क्षेत्र में जायें तो अधिक सफल होते हैं।
ऐसे लोग किसी से न तो प्रेम करते हैं और न ही किसी के सगे होते हैं। यहाँ तक कि अपने जीवनसाथी से भी बात छुपाते हैं। इस भाव के गुरु के प्रभाव से जातक की शिक्षा अधिक नहीं हो पाती है परन्तु मेरे अनुभव में गुरु यदि किसी केन्द्र स्थान का स्वामी हो तो अवश्य ही जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं ऐसे व्यक्ति कभी संतान से सुख नहीं ले पाते हैं। उन्हें अपनी संतान का अन्त तक भरण पोषण करना पड़ता है। जातक यदि आरम्भ से ही व्यवसाय करे तो उसमें वह सफल हो जाता है। यहाँह पर गुरु यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो जातक शिक्षा के क्षेत्र में ख्याति अर्जित करता है। ऐसे योग वाले जातकों को कभी भी पीलिया अथवा यकृत से सम्बन्धित रोगों को छोटा नहीं समझना चाहिये।
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