चंद्र छटे भाव में – छटे भाव में चन्द्र बलारिष्ठ योग का निर्माण करता है, इस योग के द्वारा जातक के जन्म लेते ही मृत्यु की सम्भावना होती है। यदि बच भी जाये तो पूरा बचपन रोग से लड़ने में निकलता है क्योकि शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति कम होती है। ऐसे बच्चे कमज़ोर शरीर के होते है। कम से कम बारह वर्ष की आयु पश्चात् ही पूर्ण रूप से स्वस्थ होते है। चंद्र छटे भाव में जातक को अत्यधिक खर्चीले स्वभाव का बनाता है। यदि लग्न अथवा चंद्र पर शुक्र का प्रभाव हो तो जातक मेहेंगी वस्तुओं पर अधिक खर्च करता है। जातक यदि धनि हुआ तो घर में कई नौकर होते है।
चंद्र यदि पीड़ित अवस्था में हो तो जातक को नेत्र व् कफ रोग होते है। कुंडली का छठा भाव रोग भाव होता है इसीलिए इस भाव में चंद्र के रोग से जुड़े प्रभाव अधिक होते है। यदि चंद्र स्वराशि हुआ तो पाचन क्रिया से जुडी परेशानियां उत्त्पन्न करता है जिससे जातक जीवन भर परेशान रहता है। चंद्र छटे भाव में यदि वृषभ, सिंह, वृश्चिक अथवा कुम्भ राशि में हो तो जातक जीवनभर वात रोग से पीड़ित रहता है और गुदा से जुड़े रोग भी होते है।
चंद्र यदि वृषभ, कन्या अथवा मकर राशि में हो रक्त से जुड़े रोग उत्पन्न होते है जैसे उच्च रक्तचाप इत्यादि। यदि चतुर्थ भाव अथवा चथुर्तेश भी पीड़ित हो तो निश्चय ही हृदय रोग अथवा हृदय घात की सम्भावना रहती है। जलीय राशि कर्क, वृश्चिक अथवा मीन में चंद्र होने पर कफ रोग तथा फेफड़ो से सम्बंधित रोग होते है। ऐसे जातकों को जुखाम और सर्दी से अत्यधिक पीड़ा रहती है। यदि कुंडली का द्वितीय भाव अथवा द्वितीयेश भी पीड़ित अवस्था में हो तो गला हमेशा ख़राब रहता है। ऐसे जातकों को ठन्डे पेय प्रदार्थों तथा मसाले दार भोजन का त्याग करना चाहिए अन्यथा समस्या बढ़ सकती है।
चंद्र यदि अग्नि तत्व मेष, सिंह अथवा धनु राशि में हो सूर्य कुंडली में बलि अवस्था में हो तो जातक चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाब होता है और ख्याति प्राप्त चिकित्सक बनता है। छटे भाव में चंद्र विशेष रूप से रोग से सम्बंधित अशुभ प्रभाव प्रदान करता है। यदि जातक किसी बड़े रोग से पीड़ित हो जाये तो रोग लम्बी अवधि तक चलता है, इसीलिए ऐसे जातकों को जिनका चंद्र छटे भाव में स्थित है और रोग सम्बंधित अशुभ फल मिल रहे है तो चंद्र से सम्बंधित उपाय अवश्य करने चाहिए। चांदी धारण नहीं करनी चाहिए अथवा सोमवार को चांदी दान करनी चाहिए। ऐसे जातकों को सफ़ेद भोजन जैसे चावल, दूध, दही जैसी वस्तुए संध्या के पश्चात सेवन नहीं करनी चाहिए। किसी अनुभवी ज्योतिषी से कुंडली का निरिक्षण अवश्य कराएं।