चंद्र पहले भाव में – यदि चन्द्र पहले भाव में स्थित हो तो जातक ऐश्वर्यशाली और भोग प्रिय होता है। जातक को जीवन में सभी प्रकार के सुख और भोग विलास की प्राप्ति होती है। ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा जल का प्रतिनिधित्व करता है इसीलिए ऐसे जातक के शरीर में जल की मात्रा अधिक होती है और जातक का शरीर स्थूल अवस्था में होता है। शरीर में वसा अधिक होती है। यदि चंद्र कुंडली के प्रथम भाव में हो तो जातक को गीत संगीत में भी बहुत रूचि होती है। यदि कुंडली में बुध और शुक्र स्थिति शुभ हो तो जातक एक प्रसिद्ध संगीतकार बन सकता है।
प्रथम भाव में शुभ चन्द्रमा की स्थिति जातक को एक सफल व्यापारी बनाती है क्योंकि शुभ चन्द्रमा की सातवीं दृष्टि कुंडली के सप्तम भाव अथवा व्यापार के भाव पर पड़ती है। चंद्र चाहे सप्तम पर दृष्टि डाले अथवा सप्तम भाव में विराजित हो, जातक को व्यापार में सफलता प्रदान करता है। चंद्र कुंडली के प्रथम भाव में हो तो जातक को अधिक घुमने फिरने की आदत होती है। जातक कभी भी एक स्थान पर टिक कर नहीं बैठता क्योकि चन्द्रमा बहुत चंचल गृह माना गया है और यह एक राशि में सिर्फ सवा दो दिन में ही परिवर्तन कर लेता है, इसीलिए जातक घुमक्कड़ किस्म का होता है और उसे नए नए स्थानों पर यात्रा करना अधिक पसंद है। ऐसे जातक यात्राओं से जुड़े व्यवसाय करते है और यात्राओं से धन कमाते है।
चंद्र प्रथम भाव में जातक को बहुत मिलनसार बनाता है। ऐसे जातको के मित्र अधिक होते है। मिलनसार होने के कारण समाज में सम्मान प्राप्त करता है। परन्तु जातक का मन अस्थिर होता है। जीवन से जुड़े बड़े निर्णय लेने में जातक को कठनाई होती है और इसी कारण जातक जीवन में कई महत्वपूर्ण अवसर गवा देता है। चंद्र प्रथम भाव में यदि मेष राशि में हो तो मन अस्थिर होता है और जातक हर काम को जल्दी करने की आदत की वजह से हर क्षेत्र में कष्ट उठाता है। इसके विपरीत यदि चंद्र प्रथम भाव में सिंह अथवा धनु राशि में हो तो जातक शांत स्वभाव का होता है। कम बोलने वाला और स्थिर मन का होता है।
ऐसे जातको को जीवन में जितना भी धन मिल जाये उसी से संतुष्ट रहते है। अधिक धन के लालची नहीं होते। यदि कुंडली में केतु की स्थिति शुभ हो तो जातक का सांसारिक जीवन के प्रति मोह कम होता है। यदि गुरु का प्रभाव भी लग्न अथवा चंद्र पर हो तो जातक जीवन के अंतिम चरण में धन और सांसारिक जीवन का त्याग कर देता है और अध्यात्म की की खोज में निकल पड़ता है। चंद्र प्रथम भाव में यदि पृथ्वी तत्त्व राशि वृषभ, कन्या अथवा मकर में हो तो जातक कुछ न होते हुए भी घमंडी किस्म का होता है। ऐसा जातक हर क्षेत्र में अपने आप को ज्ञानी अथवा सर्वश्रेष्ठ समझता है।
चंद्र प्रथम भाव में यदि वृषभ राशि में स्थित हो तो उच्च का होता है। ऐसा जातक अत्यधिक काम वासना में पीड़ित रहता है चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष। क्योकि चंद्र शुक्र की राशि में उच्च का होता है तो ऐसे जातक के मन में हमेशा काम वासना से जुड़े ख्याल आते रहते है। यदि लग्न का स्वामी शुक्र अष्टम भाव से अथवा अष्टमेश से सम्बन्ध बनाये तो जातक काम वासना के चलते कुछ ऐसा कर बैठता है की उसकी परिवार तथा समाज में बदनामी हो जाती है। और सप्तम भाव अथवा मंगल पीड़ित हो तो विवाह मध्य आयु में विवाह विच्छेद हो जाता है।
चंद्र प्रथम भाव में यदि वायु तत्त्व राशि मिथुन, तुला अथवा कुम्भ में हो तो जातक पापी, दुराचारी तथा स्वार्थी होता है। अपने लाभ के लिए वह किसी का नुक्सान कर सकता है। उसे जीवन में एक उच्च स्तरीय राजनेता बनने की लालसा रहती है। और हमेशा अपने आप को एक उच्च राजनेता समझता है। यदि कुंडली में और भी राजनेता बनाने के योग के कारण वह राज नेता बन जाता है तो अपने पद का भरपूर दुरूपयोग करता है और जीवन अत्यधिक धन कमाता है।
चंद्र प्रथम भाव में यदि जल तत्त्व कर्क, वृश्चिक अथवा मीन राशि में हो तो जातक बहुत झूठ बोलता है और अपने किसी भी काम में किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं करता और न ही किसी अन्य के काम में हस्तक्षेप करता है। हमेशा बात बात पर झूठ बोलने के कारण जातक समाज और परिवार में अपमानित होता है। यहाँ तक की जातक अपने जीवन साथी से भी झूठ बोलता है और मद्य आयु तक जातक का विवाह सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है अथवा जातक अपने जीवन साथी को छोड़ देता है। परन्तु इसमें कुंडली में सप्तम भाव की स्थिति को देखना भी आवश्यक है।