चंद्र पाचवे भाव में – चंद्र पंचम भाव में हो तो ऐसा जातक अत्यधिक उच्च विचारों वाला होता है। तथा चन्द्रमा के भाँति चंचल स्वभाव का होता है। कुंडली का पंचम भाव संतान भाव होता है यदि यहाँ चंद्र हो तो जातक की कन्या सन्तत्ति अधिक होती है। क्योकि चंद्र एक स्त्री गृह होता है। यदि चंद्र पंचम भाव में कर्क, वृश्चिक, अथवा मीन राशि में हो तो पुत्र संतान अधिक होती है। परन्तु पहली संतान कन्या ही होती है। चन्द्रमा पंचम भाव में जातक को दयालु स्वभाव का बनता है, यदि कोई जातक से किसी अपराध के लिए क्षमा याचना करे तो जातक तुरंत माफ़ कर देता है।
यदि पंचम भाव में चंद्र की स्थिति शुभ हो तो जातक को जुवे, सट्टे और लाटरी से विशेष लाभ होता है। परन्तु इसके विपरीत यदि चन्द्रमा यहाँ पर नीच अथवा पीड़ित अवस्था में हो तो जातक को जुवे, सट्टे और लाटरी से परहेज़ करना चाहिए अन्यथा भारी नुक्सान हो सकता है। पंचम भाव में चंद्र यदि पीड़ित अवस्था में हो तो जातक की पुत्री को वैवाहिक सुख प्राप्त नहीं होता। यदि विवाह हो भी जाये तो वैवाहिक जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है तथा तलाक होने की भी सम्भावना रहती है।
चंद्र पंचम भाव में यदि अग्नि तत्व मेष, सिंह, अथवा धनु राशि में हो और शनि की दृष्टि हो तो जातक की शिक्षा में अवरोध उत्त्पन्न होते है। चंद्र यदि अधिक पीड़ित हो तो जातक की शिक्षा पूर्ण नहीं होती। घर की जिम्मेदारिओं के चलते जातक को बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। चंद्र पंचम भाव में यदि पृथ्वी तत्व वृषभ, कन्या अथवा मकर राशि में हो तो जातक को उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं होती। परन्तु यदि गुरु की दृष्टि अथवा युति हो तो जातक अवश्य ही उच्च शिक्षा प्राप्त करता है।
चंद्र पंचम भाव में यदि द्विस्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु, अथवा मीन में हो तो जातक की जुड़वां संतान हो सकती है। जातक को दहेज़ में बहुत धन प्राप्त होता है और पत्नी भी धन कमाती है। परन्तु इन प्रभावों के लिए चंद्र की शुभ स्थिति आवश्यक है। यदि चंद्र किसी पाप गृह से पीड़ित हुआ तो यह फल प्राप्त नहीं होते। कुंडली के पंचम भाव में यदि चन्द्रमा वायु तत्व मिथुन, तुला अथवा कुम्भ राशि में हो तो जातक अत्यधिक परिश्रमी होता है। परन्तु जातक को अपने परिश्रम का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।ऐसी स्थति में जातक को किसी अनुभवी ज्योतिष से अपनी कुंडली का विवेचन अवश्य करवाना चाहिए और चन्द्रमा से जुड़े उपाय करने चाहिए।