चंद्र आठवे भाव में – चंद्र अष्टम भाव में अत्यधिक कष्टकारी होता है। ऐसा जातक सदैव रोगग्रस्त रहता है। जातक की रोग से लड़ने की क्षमता कम होती है जिसके कारण जातक को छोटी से छोटी बिमारी जल्दी लग जाती है। जातक को नेत्र से सम्बंधित रोग होता है। कुंडली का अष्टम भाव मारक भाव होता है इसीलिए चंद्र अष्टम भाव में होने से जातक को जल से भय रहता है। ऐसे जातक को नदी, तालाब, कुए और समुंद्र से दूर रहना चाहिए। जातक की ऐसे स्थानों पर दुर्घटना की सम्भावना रहती है। चंद्र अष्टम भाव में हो तो जातक अभिमानी होता है। अत्यधिक कामी तथा सभी से ईर्ष्या करने वाला होता है।
परिवार, मित्र अथवा सम्बन्धियों में किसी की तरक्की से खुश नहीं होता। इसका एक कारण यह भी है की जातक हमेशा अपने आप को शीर्ष पर देखना चाहता है इसीलिए दूसरों की तरक्की से परेशान हो जाता है। अष्टम भाव में चन्द्रमा जातक को एक अच्छा व्यापारी बनाता है। यदि जातक की कुंडली में अच्छा धन योग बने तो जातक व्यापार के माध्यम से बहुत धन कमाता है। अष्टम भाव में चंद्र पर यदि शनि, राहु अथवा मंगल की दृष्टि एवं युति हो तो बालरिष्ठा योग का निर्माण होता है। फलस्वरूप जातक को जन्म लेते ही मृत्यु तुल्य कष्ट होता है ,यदि मृत्यु से बच जाए तो पूरा बचपन रोग ग्रस्त रहता है।
ऐसे जातक के जन्म के पश्चात् माता पिता के जीवन में अत्यधिक कठनाईया उत्पन्न हो जाती है। जातक अपने माता पिता के लिए भारी होता है। अष्टम भाव में चन्द्रमा यदि उच्च अथवा स्वराशि हो तो जातक का भाग्योदय विवाह के उपरांत होता है। जातक की पत्नी अथवा पति उसके लिए भाग्यशाली होता है। चन्द्रमा अष्टम भाव में यदि जलीय राशि कर्क, वृश्चिक अथवा मीन में हो तो जलीय दुर्घटना का योग निर्मित होता है। इन जातकों को हमेशा जल से दूर रहना चाहिए। चंद्र यदि अष्टम भाव में वायु तत्व मिथुन, तुला अथवा कुम्भ राशि में हो तो जातक को वसीयत में बहुत संपत्ति प्राप्त होती है।
जातक का विवाह अत्यधिक धनि परिवार में होता है और जातक को ससुराल से भी आर्थिक लाभ होता है। परन्तु धनि परिवार से होने के कारण जातक की पत्नी अत्यधिक घमंडी होती है जिसके कारण घर में हमेशा कलह रहता है। जातक के पास धन की कोई कमी नहीं रहती परन्तु घर में कलह की वजह से जातक परेशान रहता है। केतु का प्रभाव यदि चंद्र पर हो तो जातक कलह से परेशान होकर अपना सब कुछ छोड़ देता है और एक सन्यासी बन जाता है।
नोट: उपरोक्त लिखे गए सभी फल वैदिक ज्योतिष के आधार पर लिखे गए है। कुंडली में स्थित अन्य ग्रहों की स्थिति के अनुसार फल में विभिन्नता हो सकती है।