वैदिक ज्योतिष के अनुसार नौवे कुंडली के नौवे भाव में क्या फल प्रदान करता है तथा जातक पर राहु का क्या प्रभाव पड़ता है ?
नवम (धर्म व भाग्य भाव)- कुंडली के नवम भाव में राहू यदि अधिक अशुभ हो तो बचपन में ही पिता का सुख छीन लेता है। जातक मेहनती होता है परन्तु उसे उसके परिश्रम का पर्याप्त फल प्राप्त नहीं होता। वह अधिकतर जन्म स्थान से दूर अथवा विदेश में प्रवास करता है। भाग्यहीन, दुष्टबुद्धि परन्तु धार्मिक स्वभाव का होता है। ऐसे जातक की संतान भी कम ही होती है।अपने जीवनसाथी से बेहद प्रेम करने वाला तथा विदेश यात्रा अवश्य करता है। उसे वृद्धावस्था में राज्य सम्मान व पुत्र सुख की प्राप्ति होती है।
इस भाव में राहू स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) का हो तो जातक की कई संतानों की असमय मृत्यु होने की सम्भावना रहती है। जिसमें पहले कन्या फिर मध्यवय में पुत्र संतान होती है। जातक बहिनों के लिये कष्टप्रद होता है। भाई यदि एक साथ रहते हो तो उन्नति नहीं कर पाते। अलग-अलग रहें तो अवश्य कुछ उन्नति कर सकते हैं।
राहू यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो जातक भाई के सुख से हीन होता है। अग्नि तत्व (मेष, सिंह व धनु) राशि के राहू के प्रभाव से जातक का दाम्पत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। राहू वायु तत्व (मिथुन, तुला व कुंभ) राशि में होने पर जातक अपने जीवनसाथी को मात्र भोग की वस्तु समझता है। उसके संतान नहीं होती। यदि यह योग किसी पुरुष की पत्रिका में हो तो संतान के लिये उसे दूसरा विवाह करना पड़ता है। ऐसा जातक किसी विदेशी स्त्री से विवाह कर विदेश भी जा सकता है। ऐसा राहू छोटे भाई की मृत्यु का भी द्योतक है।
राहू यदि सिंह राशि में इस भाव में बैठा हो तो जातक को पिता का पूर्ण सुख प्राप्त होता है परन्तु यदि शनि की किसी भी राशि में हो तो पिता के सुख में अवश्य ही कमी आती है। ऐसे जातक के भाग्य के कार्यों में अवश्य ही अवरोध आता है। वह अपने जीवन के आरम्भ में बहुत संघर्ष करता है।
उपरोक्त लिखे गए सभी फल वैदिक ज्योतिष के आधार पर लिखे गए है, कुंडली में स्थित अन्य ग्रहों के प्रभाव से फल में विभिन्नता हो सकती है।
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