वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र कुंडली के बारहवे भाव में क्या फल देता है तथा जातक पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है ?
द्वादश (व्यय भाव)- इस भाव में शुक्र के अन्य ग्रहों की अपेक्षा अधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस भाव में भी शुक्र के शुभ फल का मुख्य कारण यह होता है कि जैसा ज्योतिष का नियम है कि जो भी ग्रह व्यय भाव अर्थात् इस भाव में बैठेगा तो वह अपने कारक फल का व्यय करेगा। शुक्र भाग का कारक है। जब वह अपने फल का व्यय करेगा तो जातक के भौतिक फल में वृद्धि होती है और भौतिक फल में वृद्धि तभी होती जब जातक आर्थिक रूप से समृद्ध होगा। ग्रन्थों के अनुसार जातक न्यायप्रिय, आर्थिक रूप से सम्पन्न, आलसी, शत्रुहन्ता, अवैध सम्बन्ध वाला, पतित विचार का, स्थूल शरीर तथा शीघ्रपतन के रोग से ग्रस्त (पुरुष पत्रिका में) होता है।
मेरे शोध में ऐसा जातक व्यवसाय में असफल होता है परन्तु मनोरंजन तथा अÕयाशी पर अधिक व्यय करने वाला, रोगी विशेषकर गुप्त रोगी, अनैतिक कार्यों में लीन रहने वाला, असफल प्रेमी तथा जीवनसाथी से मतभेद वाला होता है। मतभेद भी उसके अवैध सम्बन्ध ही कराते हैं, क्योंकि उसके जीवनसाथी को उसकी प्रेमलीला का ज्ञान होता है। उसके अस्वस्थ रहने का भी यही कारण होता है, क्योंकि इस योग के प्रभाव से इस शुक्र वाले जातक का जीवनसाथी अपने जीवन में एक बार अवश्य ही गम्भीर रूप से बीमार होता है। उसकी बीमारी की कोई चिकित्सा भी नहीं होती है। जातक उसकी चिकित्सा में कोई कमी नहीं रहने देता है। बड़े से बड़े चिकित्सक द्वारा चिकित्सा होती है परन्तु रोग पकड़ में नहीं रहने देता है।
बड़े से बड़े चिकित्सक द्वारा चिकित्सा होती है परन्तु रोग पकड़ में नहीं आता है। कुंभ लग्न के अतिरिक्त शुक्र यहाँ प्रत्येक लग्न में शुभ फलदायक है। यहाँ पर स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) का शुक्र जातक को पूर्णतः व्यभिचारी बनाता है। जीवनसाथी से सम्बन्ध अच्छे नहीं रहते व दूसरे विवाह का भी योग होता है। यदि शनि के प्रभाव में हो तो जाति व समाज से बाहर विवाह कराता है। इस भाव में उच्च अर्थात् मीन का शुक्र मंगल के साथ हो तो जातक अवैध सम्बन्धों में ही विश्वास करते हैं। जातक इतने अधिक कामी होते हैं कि बलात्कार से भी नहीं हिचकते।
ऐसे योग वाली स्त्रियाँ भी देखी हैं जो किसी को भय, लालच अथवा किसी प्रकार से ब्लैकमेल कर शारीरिक सम्बन्ध बनाती हैं। शुक्र यदि कर्क, मकर, वृश्चिक, कन्या अथवा मेष राशि में मंगल अथवा शनि के अशुभ प्रभाव में हो तो जातक का वैवाहिक सुख समाप्त हो जाता है। इसका कारण जीवनसाथी की मृत्यु हो सकती है परन्तु वह शारीरिक सुख भोगता ही रहता है। ऐसा जातक सबको लुभाने के लिये अनाप-शनाप धन खर्च करता है। पहनावा भी उच्च स्तर का रखता है। यह सब फल शुक्र के व्यय भाव के फल हैं।
Note: उपरोक्त लिखे गए सभी फल वैदिक ज्योतिष के आधार पर लिखे गए है ! कुंडली में स्थित अन्य ग्रहों की स्थिति के अनुसार फलों में विभिन्नता हो सकती है !