वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा मन, भावनाओं और मानसिक स्थिति का कारक ग्रह है। षष्ठ भाव रोग, ऋण, शत्रु, सेवा, संघर्ष और दैनिक जीवन की जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है। जब चंद्रमा षष्ठ भाव में स्थित होता है तो व्यक्ति का मन लगातार संघर्ष और समाधान की स्थिति में रहता है। ऐसा व्यक्ति जीवन की चुनौतियों से भावनात्मक रूप से जूझता है और समस्याओं को दिल से महसूस करता है।
इस स्थिति में व्यक्ति सेवा भाव वाला होता है। वह दूसरों की मदद करने में मानसिक संतोष महसूस करता है और कठिन परिस्थितियों में भी जिम्मेदारी उठाने से पीछे नहीं हटता। नौकरी, चिकित्सा, सामाजिक सेवा, प्रशासन या ऐसे कार्य जहां रोजमर्रा की समस्याओं से निपटना पड़े, वहां यह योग देखने को मिलता है।
मानसिक रूप से यह स्थिति कुछ हद तक तनावपूर्ण हो सकती है। व्यक्ति छोटी छोटी बातों को लेकर भी मन में चिंता कर लेता है। शत्रु या विरोधी उसे मानसिक रूप से अधिक प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन यदि चंद्रमा मजबूत हो तो वही व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी मानसिक रूप से मजबूत बना रहता है और विरोधियों पर विजय प्राप्त करता है।
स्वास्थ्य का सीधा संबंध मन से रहता है। भावनात्मक तनाव शरीर में रोग के रूप में प्रकट हो सकता है, विशेषकर पेट, पाचन और नींद से जुड़ी समस्याएँ। ऐसे व्यक्ति के लिए मानसिक संतुलन बनाए रखना स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक होता है।
ऋण और आर्थिक जिम्मेदारियों को लेकर मन में चिंता बनी रह सकती है। हालांकि यह व्यक्ति मेहनत और निरंतर प्रयास से अपने कर्ज और कठिनाइयों पर नियंत्रण पा सकता है। यह योग संघर्ष के बाद सफलता देने वाला माना जाता है।
यदि चंद्रमा पीड़ित हो तो व्यक्ति स्वयं का शत्रु बन सकता है। नकारात्मक सोच, चिंता और भय उसे कमजोर बना सकते हैं। वहीं शुभ चंद्रमा व्यक्ति को सेवा के माध्यम से सम्मान और स्थिरता देता है।
कुल मिलाकर षष्ठ भाव में चंद्रमा व्यक्ति को संघर्ष से सीखने वाला बनाता है। जीवन की कठिन परिस्थितियाँ ही उसके भीतर मानसिक मजबूती और सहनशक्ति विकसित करती हैं। जब वह अपने मन को अनुशासित कर लेता है, तब यही स्थिति उसे समस्याओं पर विजय दिलाने वाली बन जाती है।



