वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा मन, भावनाओं, संवेदनशीलता और संबंधों में जुड़ाव का प्रतीक है। सप्तम भाव विवाह, जीवनसाथी, साझेदारी और सार्वजनिक संबंधों से जुड़ा होता है। जब चंद्रमा सप्तम भाव में स्थित होता है तो व्यक्ति का मन सीधे रिश्तों से जुड़ जाता है। ऐसा व्यक्ति अकेले रहने की बजाय किसी न किसी संबंध में रहकर ही खुद को पूर्ण महसूस करता है।
इस स्थिति में व्यक्ति जीवनसाथी से गहरी भावनात्मक अपेक्षा रखता है। वह चाहता है कि उसका साथी उसे समझे, उसका ख्याल रखे और भावनात्मक सुरक्षा दे। रिश्तों में अपनापन और संवाद उसके लिए बहुत जरूरी होता है। यदि यह संतुलन बना रहे तो वैवाहिक जीवन सुखद रहता है।
सप्तम भाव में चंद्रमा व्यक्ति को आकर्षक और लोगों के बीच लोकप्रिय बनाता है। वह दूसरों की भावनाओं को जल्दी समझ लेता है और सामने वाले के अनुसार खुद को ढाल लेता है। व्यापार या साझेदारी में भी यह योग लाभदायक हो सकता है, खासकर उन कार्यों में जहां लोगों से सीधा संपर्क होता है।
हालांकि इस स्थिति में मन की अस्थिरता रिश्तों में उतार चढ़ाव भी ला सकती है। व्यक्ति कभी बहुत जुड़ जाता है और कभी भावनात्मक दूरी महसूस करने लगता है। यदि चंद्रमा कमजोर हो तो रिश्तों में गलतफहमियाँ, भावनात्मक निर्भरता या बार बार मन बदलने की प्रवृत्ति देखी जा सकती है।
जीवनसाथी का स्वभाव भावनात्मक हो सकता है और उसका मन भी जल्दी प्रभावित होता है। दोनों के बीच भावनाओं का तालमेल बहुत जरूरी होता है। यदि यह तालमेल न बने तो छोटी बातें भी बड़ा रूप ले सकती हैं।
कुल मिलाकर सप्तम भाव में चंद्रमा व्यक्ति को संबंधों के माध्यम से जीना सिखाता है। उसकी सबसे बड़ी सीख यह होती है कि रिश्तों में संतुलन, समझ और भावनात्मक परिपक्वता कैसे लाई जाए। जब व्यक्ति अपने मन को स्थिर करना सीख लेता है, तब यही स्थिति उसे सुखद वैवाहिक और सामाजिक जीवन प्रदान करती है।



