वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन, भावनाओं, संवेदनशीलता, माता और मानसिक स्थिति का प्रतीक माना जाता है। द्वितीय भाव धन, परिवार, वाणी, भोजन और संस्कारों से जुड़ा होता है। जब चंद्रमा द्वितीय भाव में स्थित होता है तो व्यक्ति का मन सीधे इन विषयों से जुड़ जाता है। ऐसा व्यक्ति अपने परिवार और आर्थिक स्थिति को लेकर बहुत भावनात्मक होता है और इन्हीं बातों से उसकी मानसिक शांति या अशांति तय होती है।
इस स्थिति में व्यक्ति की वाणी में भावनाएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। वह जो भी बोलता है उसमें दिल शामिल होता है। ऐसे लोग मधुर भाषी होते हैं और उनकी आवाज में आकर्षण होता है। लोग उनकी बातों से जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। हालांकि यदि चंद्रमा कमजोर हो तो वही वाणी कभी कभी अस्थिर, अत्यधिक भावुक या कटु भी हो सकती है और अनजाने में रिश्तों को नुकसान पहुँचा सकती है।
परिवार इनके जीवन का केंद्र होता है। बचपन के संस्कार, माता का प्रभाव और पारिवारिक माहौल इनके व्यक्तित्व को गहराई से आकार देता है। ये लोग अपने परिवार की जिम्मेदारियों को मन से निभाते हैं और अपनों की खुशी के लिए बहुत कुछ त्याग भी कर सकते हैं। परिवार में तनाव होने पर इनका मन जल्दी विचलित हो जाता है।
धन के मामले में यह योग स्थिरता से अधिक आवक जावक को दर्शाता है। पैसा आता भी है और खर्च भी जल्दी हो जाता है। भोजन, घर, परिवार और आराम की चीजों पर खर्च अधिक रहता है। यदि चंद्रमा शुभ स्थिति में हो तो जीवन में धन की कमी नहीं रहती, लेकिन मन की शांति आर्थिक उतार चढ़ाव से जुड़ी रहती है।
मानसिक रूप से ऐसा व्यक्ति बहुत संवेदनशील होता है। उसे सम्मान और अपनापन चाहिए। दूसरों की कही बातें दिल पर जल्दी लगती हैं। प्रशंसा उसे बहुत आगे बढ़ा सकती है और आलोचना उसे भीतर तक प्रभावित कर सकती है। खाने पीने की आदतों का भी मन पर सीधा असर पड़ता है।
यदि चंद्रमा पीड़ित हो तो व्यक्ति को धन, परिवार और वाणी तीनों क्षेत्रों में सावधानी रखनी चाहिए। भावनाओं में बहकर निर्णय लेने से नुकसान हो सकता है। भोजन और खर्च दोनों में संयम आवश्यक होता है।
कुल मिलाकर द्वितीय भाव में चंद्रमा व्यक्ति को भावनात्मक रूप से समृद्ध बनाता है। उसकी सबसे बड़ी ताकत उसकी वाणी और पारिवारिक जुड़ाव होता है। जब यह ऊर्जा संतुलित रहती है तो व्यक्ति न केवल आर्थिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी सुरक्षित महसूस करता है।



