वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा मन, भावनाओं, संवेदनशीलता और मानसिक प्रवृत्ति का प्रतीक है। तृतीय भाव साहस, पराक्रम, संवाद, लेखन, छोटे भाई बहन, प्रयास और दैनिक मेहनत से जुड़ा होता है। जब चंद्रमा तृतीय भाव में स्थित होता है तो व्यक्ति का मन लगातार सक्रिय रहता है और वह अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए बेचैन रहता है।
ऐसा व्यक्ति बोलने, लिखने और अपनी बात रखने में सहज होता है। उसकी सोच भावनात्मक जरूर होती है लेकिन उसमें रचनात्मकता भी होती है। वह अपनी भावनाओं को शब्दों के माध्यम से बाहर निकालना चाहता है। इसी कारण लेखन, मीडिया, सोशल मीडिया, पत्रकारिता, मार्केटिंग या पब्लिक डीलिंग जैसे क्षेत्रों में उसे रुचि हो सकती है।
तृतीय भाव में चंद्रमा व्यक्ति को मानसिक रूप से चंचल बनाता है। उसका मन एक ही जगह टिके रहना पसंद नहीं करता। नए विचार, नए काम और नए लोगों से जुड़ने की इच्छा बनी रहती है। कभी कभी यह स्थिति निर्णयों में अस्थिरता भी ला सकती है, खासकर तब जब भावनाएँ हावी हो जाएँ।
भाई बहनों के साथ भावनात्मक जुड़ाव गहरा होता है। उनका सुख दुख व्यक्ति के मन को सीधे प्रभावित करता है। यदि चंद्रमा शुभ हो तो भाई बहनों से सहयोग और अपनापन मिलता है, लेकिन कमजोर चंद्रमा होने पर गलतफहमियाँ या भावनात्मक दूरी महसूस हो सकती है।
साहस और प्रयास इस योग में मन से जुड़े होते हैं। व्यक्ति वही काम पूरे मन से करता है जिससे वह भावनात्मक रूप से जुड़ा हो। जब मन मजबूत होता है तो यह व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी डटा रहता है, लेकिन मन कमजोर होने पर आत्मविश्वास में कमी आ सकती है।
यात्राएँ, खासकर छोटी दूरी की यात्राएँ, इस व्यक्ति के मन को सुकून देती हैं। वातावरण बदलना, नए अनुभव लेना और लोगों से बातचीत करना उसके लिए मानसिक संतुलन बनाए रखने का एक तरीका बन जाता है।
कुल मिलाकर तृतीय भाव में चंद्रमा व्यक्ति को भावनाओं के साथ संवाद करने वाला इंसान बनाता है। उसकी ताकत उसका विचारों को व्यक्त करने का तरीका होता है। जब वह अपने मन की चंचलता को दिशा दे देता है, तो यही स्थिति उसे प्रभावशाली वक्ता, लेखक और प्रेरक व्यक्तित्व बना सकती है।



