वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा मन, भावनाओं, माता, स्मृति और आंतरिक शांति का प्रतीक ग्रह है। चतुर्थ भाव सुख, घर, माता, मातृभूमि, संपत्ति और मानसिक संतुलन से जुड़ा होता है। जब चंद्रमा चतुर्थ भाव में स्थित होता है तो व्यक्ति का मन घर, परिवार और आंतरिक शांति से गहराई से जुड़ा रहता है।
ऐसा व्यक्ति भीतर से बहुत संवेदनशील और भावनात्मक होता है। उसे अपने घर, अपनी जड़ों और अपने लोगों से गहरा लगाव होता है। घर का वातावरण यदि शांत और प्रेमपूर्ण हो तो यह व्यक्ति मानसिक रूप से बहुत मजबूत रहता है, लेकिन घर में अशांति होने पर उसका मन जल्दी विचलित हो जाता है।
माता का प्रभाव जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। मां से भावनात्मक लगाव गहरा रहता है और अक्सर मां ही व्यक्ति की मानसिक शक्ति का स्रोत बनती है। यदि चंद्रमा शुभ स्थिति में हो तो माता का प्रेम, सहयोग और आशीर्वाद जीवन भर साथ रहता है। कमजोर चंद्रमा होने पर माता के स्वास्थ्य या संबंधों को लेकर चिंता बनी रह सकती है।
चतुर्थ भाव में चंद्रमा व्यक्ति को सुख सुविधाओं के प्रति संवेदनशील बनाता है। उसे आराम, अच्छा भोजन, शांत वातावरण और भावनात्मक सुरक्षा की आवश्यकता होती है। जमीन, घर, वाहन या संपत्ति से जुड़े मामलों में भी मन की भूमिका बहुत बड़ी रहती है।
मानसिक रूप से यह व्यक्ति बाहर से शांत दिखाई दे सकता है, लेकिन भीतर भावनाओं का सागर चलता रहता है। यादें, पुराने अनुभव और बचपन की बातें उसके मन पर गहरा प्रभाव डालती हैं। कई बार वह अतीत में जीने लगता है, जिससे भावनात्मक उतार चढ़ाव हो सकते हैं।
यदि चंद्रमा मजबूत हो तो व्यक्ति को घरेलू सुख, मानसिक शांति और समाज में सम्मान मिलता है। ऐसा व्यक्ति दूसरों को भी भावनात्मक सहारा देने में सक्षम होता है। लेकिन यदि चंद्रमा पीड़ित हो तो मानसिक बेचैनी, घर बदलने की स्थिति या भीतर की असुरक्षा महसूस हो सकती है।
कुल मिलाकर चतुर्थ भाव में चंद्रमा व्यक्ति को दिल से घर और परिवार से जोड़ता है। उसकी असली ताकत उसकी भावनात्मक जड़ें होती हैं। जब उसका मन सुरक्षित और शांत रहता है, तब यह योग जीवन में सच्चा सुख और संतोष प्रदान करता है।



